बाज़ार
बाज़ार
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रिश्तों को तार तार देखा है
घर मे एक बाज़ार देखा है
ख़ूबसूरत दूर से ही दिखें
पास से दाग़दार देखा है
तौलते हैं ज़रूरतों से सदा
हमने ऐसा भी प्यार देखा है
रूह काली जिस्म है उजला
अब तो ऐसा सिंगार देखा है
लाख़ रंगों से हैं लुभायें मगर
गुल से बेहतर हैं खार देखा है
अपने लहू से बाग़ को सींचे
शख्स वो ज़ार -ज़ार देखा है
मुझ में भी कोई बात तो होगी
मुड़ के जो बार-बार देखा है!!