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वसंत

वसंत

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आओ नव वसंत का स्वागत करें ,
ठंडे , सूखे , नीरस जीवन को ख़ुशियों से भरें ।
सूखी डालियों पर नवीन कोंपलें हैं फूटी ,
सर्द ,लम्बी , काली रातों की ख़ामोशी है टूटी ।
बाग़ों में दूर तक हरियाली है और फूल मुस्कुराते हैं ,
बेझिझक होकर पंछी चहचहाते हैं ।
भँवरों की गुंजन और तितलियों की उड़ान ,
यह सब सुन ,देख कर आ जाती है बेजानों में जान ।
बच्चे भी घरों से निकल कर बगीचों में खेलते हैं  ,
उनकी मधुर किलकारियों से धरती ,गगन  गूँजते हैं ।
टेसु के फूल और गुलाब की डाली ,
देख कर ख़ुशी से इठलाता है माली ।
हवा में वसंत और हृदय में गीत ,
लेता है सभी के मन को जीत ।
चारों ओर बहार ही बहार है ,
यही तो ऋतुराज वसंत का त्योहार है ।
क्या सोचा है हमने कि यह है किसकी मेहरबानी ?
यह है ईश्वर की अनुकंपा , यह है प्रभु की कहानी ।
जिस प्रकार बिन हम से लिऐ वह सब कुछ दे देता है ,
सब पर अपनी कृपा बरसा कर कुछ नहीं कहता है ।
हमें भी कृपा, दयालुता और सहानुभूति की गंगा बहानी है,
तभी सफल इस मनुष्य जीवन का बचपन ,बुढ़ापा और जवानी है ।
Copyright  Deepa Joshi 


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