कविता
कविता
जब हम छोटे नन्हे होते
माँ-बाप हमको चलना सिखाते है
बैठाकर हमे पीठ पर अपने
खुद को ही घोडा बनाते है।।
किसे पता है कल क्या होगा
अपने संसार में हमारे साये है
जमीन में बोये बीज बबूल के तो
मीठे फल को ही तरस जाते है।।
देखी है हमने जानवर की गैरत
हम इंसान ही जानवर बनते है
इस खुशहाली की होड़ में हम
आत्मा का दर्द समझ ना पाते है।।
माया ममता लुटाकर बने माँ-बाप
कुछ न बचता उनके पास में है
प्रेम की प्यासी करुणा की झारी है
फिर भी क्यों वृद्धाश्रमोमें भेजते है ।।
अजब है ये दुनिया का मेला
लपट झपट में माँ-बाप भुला दिया है
कैसा है ये जीवन स्वार्थ से भरा
इस अनमोल खजाने को दूर किया है।।