करें सतत् शुभ ही उद्योग
करें सतत् शुभ ही उद्योग
हम में हर किसी को हरदम ही रखना है यह ध्यान,
जागृत रहकर लक्ष्य पाएंगे न होगा कोई नुकसान।
श्रम से सदा अर्जित करें धन-शक्ति और पूरा ज्ञान,
नीर-क्षीर संग तार्किक चिंतन कर रक्षित रखें मान।
जग में तो भ्रमित करने वालों का है बड़ा सघन जाल,
नहीं बनें सबको खुश करने हित इस जग की फुटबॉल।
भ्रमित किया जा रहा अन्नदाता सफल भी हो रही चाल,
नीम हकीमों के कंधों पर रख बंदूक उत्प्रेरक खुशहाल।
सीख लें अतीत से नियोजित भविष्य हेतु रखें तैयारी,
बीते सालों से आईं अनेक उत्कृष्ट योजनाएं सरकारी।
चालाकों ने लाभ कमाया हासिल कर सही जानकारी,
पचासी प्रतिशत खाई मलाई ठगी गई जनता बेचारी।
अज्ञान तिमिर को हरने के हित निज दीपक ही काफी है,
आप अंश हैं शक्ति पुंज का नहीं इस अहसास से माफी है।
निज मात-पिता-गुरु-स्वजन हितैषी बाकी भ्रम है टाफी है।
उद्योगी के प्रभु सदा सहायक उनका बल ही तो काफी है।
ज्ञान-शक्ति-धन का सदा कीजिए सर्वहित में ही उपयोग,
चापलूसी-अहंकार-लोभ सदा हैं होते बड़े भयानक रोग।
चिंता लेश नहीं करनी है हमको कि क्या -क्या कहेंगे लोग?
ज्ञान हस्ती पर होकर सवार हम करें सतत् शुभ ही उद्योग।