चाहत
चाहत
1 min
1.1K
किसी दरीचे से मै चाहूँ नामावर निकले
कोई तो दुश्मनेजाँ मेरे बराबर निकले
हरेक शक्स कयामत के इंतजार मे है
खुदा अगर है कही मौजूद-ओ-मयस्सर निकले
भटक रहा हू दरबदर, सुबह से शाम हुई
किसी की आस्ताँ मे काश मेरा सर निकले
गमे दुनिया बहुत सही है बंद कमरे मे
किवाड़ खोलू तो आगे से चारागर निकले
तमाम उम्र जिन्हे देखता रहा राही
वो महेज उलझे हुवे ख्वाबों के पैकर निकले