सीरत
सीरत
होंगे सौ खड़े राह में।
मंजिल मेरी वह न थी।
माझी जो पार किनारा करवाये।
ऐसी कोइ कश्ती न थी।
खड़े थे कई राह में।
चल रहे थे कई राहगीर।
हमसफर बन जो साथ चले।
ऐसी किसी की नियत न थी।
तकदीर के थे धनवाले।
पर दिल में मेरी कीमत न थी।
मेरे अरमान खरीद सके।
ऐसी किसी की तिजोरी न थी।
दिल का मेरे कोरा कागज।
पढ़ सके कोई,
खोल मन के आँख की पट्टी।
ऐसी किसी की सीरत न थी।