गीत
गीत
कविवृंद तुम कलम फिर, आओ चलो उठाओ
सोया हुआ वतन है, उसको पुनः जगाओ
अज्ञानता मिटाना, कर्तव्य है तुम्हारा
तुम हिन्द के सिपाही, यह हिन्द है दुलारा
काली निशा हटाकर , सूरज नया उगाओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!
दुश्मन बचे न कोई, जो फिर हमें डराये
कमजोर जानकर के, आँखें न फिर दिखाये
दृढ शक्ति ये कलम है, जग को सदा बताओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!
नापाक जो इरादे, कर खोखला रहे हैं
छुटपुट प्रहार करके, जो बौखला रहे हैं
उनको सदैव उनकी, औकात तो दिखाओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!
जन चेतना जगा दो, सद्भावना लिखो तुम
श्री राम की कथायें, आराधना लिखो तुम
वैदिक ऋचायें गूँजे, शुभ शंख तो बजाओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!
वाणी कबीर शुचिता, रसखान का सवैया।
जग को दिया गणित में, गण शून्य सा खिवैया।।
आज़ाद की भगत की, सबकी कथा सुनाओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!
शृंगार भी लिखो तुम, पर देश प्यार पहले
सबकी कथा व्यथा लिख, तज निज विकार पहले
तुम पंक में कमल फिर, इक बार तो खिलाओ
कविवृंद तुम कलम फिर !!