सच के बोल
सच के बोल
पीले पत्तों में
ढूँढ रहा है हराई का पता
पूछ रहा है रेशों से
इस ढाँचे से कभी
कपकपाती ठंड गुज़री होगी
हाँ में थोड़ा झुकना
टूट जाना
टहनियों से बिछड़ना
बिखरना पीला पड़ जाना
लिख रहा है खोजी दल
तक रही है एक टक पत्तियाँ
सवाल का सही जवाब
टूट का कारण बनता है
हवाओं ने आकर समझाया
दो चार पल और जी लेते तुम
झूठ के सहारे टहनियों संग
टूटना तो फिर भी था
सच बोलने और टूट जाने में
पीले पत्तियों का
इतिहास लिखा जा रहा है
करवट लो अब
मिट्टी संग फिर से किसी युग में
पनप उठने के लिए
लम्बे विश्राम की तैयारी करो।