वुसअत-ए-क़ायनात देखा किए
वुसअत-ए-क़ायनात देखा किए
अपनी तंगी-ए-जा-ए-दिल,
से नाचार होकर,
खुदा तेरी वुसअत-ए-क़ायनात,
देखा किए।
समझे हैं न समझेंगे,
तेरी फ़ितरत को हम,
जबकि ताउम्र हैरत से,
तेरी हर बात देखा किए।
मुमक़िन है ख़ून-ए-जिग़र,
मिला हो रंग-ए-हिना में,
लाली नज़र आयी जब,
भी तेरे हाथ देखा किए।
इक तमन्ना-ए-इन्तक़ाम,
फिर जाग उठी,
जब भी ये वहशत-ए-ख़यालात,
देखा किये।
तेरी वफ़ा-ओ-जफ़ा पे,
हम हँस दिए नाचार,
"शौक़" जब भी ये,
मामूर-ए-बर्बाद देखा किए।
फ़िर आ गया याद कोई,
बिसरा-सा दर्द मुझे,
जब किसी अहबाब की हम,
इल्तेफ़ात देखा किए।
अब बख़्शता है तू मुझे,
ख़ुदाया ज़िन्दग़ी और,
हम ताउम्र राह-ए-जवाब-ए-फ़रियाद,
देखा किए।