चले आओ ज़रा
चले आओ ज़रा
नफ़रतों के शहर में प्यार
की आँधियाँ कैसे चलेंगी।
जो दिल में लेकर गुबार
जियेंगे तो हवाएं कैसी चलेगी।
चले आओ ज़रा, मेरी खामोशी मे
मैं पुकार रहा तनहा बेहोशी में ,
तुम ही तो मेरी रूह में बसे थे
तुम्ही ने प्यार जगाया सरगोशी में।
अब तो मेरा दिल, तेरी तस्वीर बना
हर निशान पुकारे तुझे अश्कों में
तुम जो नहीं तो मैं भी नहीं हूँ ज़िंदा
ये ज़िंदगी रोये हरदम एक गमखारों सी।