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Saket Shubham

Romance

4.8  

Saket Shubham

Romance

वो हर शय जो तेरी भा गयी

वो हर शय जो तेरी भा गयी

2 mins
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वो हर शय जो तेरी भा गयी जो तू राह में आ गयी

मेरा पागलपन तुझे तेरा मुझे और तेरी हँसी भी भा गयी

निकलना था दूर मुझे यहां से, साथ मेरे तू भी आ गयी

न जब परवाह किसी की, न रुकने की चाहत, बस वहीं

इस क़िस्से की शुरुआत हुई, हर हर्फ़ सफे पर लिखा गयी


भाग के इस दुनिया से हम रुके जहां दुनिया नई आ गयी

वहां मजनूओं का मेला था फिर कई लैलाऐं भी आ गई

निकले जिस रोज़ थे दिन याद नहीं तारीख़ याद आ गयी

तारीख़ थी इश्क़ की, शो आशिक़ों का, तौर आशिक़ी का

देख नए मजनूओं का, तेरे चेहरे पे हँसी आ गयी


फिर बात कुछ मेरी हुई कुछ बात तेरी दोस्त की आ गयी

उल्फ़त की समझ तो नहीं पर झुकती नज़र तेरी भा गयी

तार्रुफ़ तक तो ठीक सही ताल्लुक का न सोचा था बात

ऐसी क्या हुई अब हमारी बातों में भी गहराई आ गयी


गले लगाया तूने जब मौज़-ए-खूं मेरे बदन पे छा गयी

ऐसे तो न निकले थे, तेरे लिए इन आंखों में नमी आ गयी

फिर हुई कुछ ऐसी बात, थोड़ा सा रश्क़ तेरा, कुछ

नासमझी मेरी भी और बंदिश बातों पर भी आ गयी


न नींद मुझे,न सुकून तुझे, चेहरे पे मायूसी सी छा गयी

आँसू जब तेरे निकले थे घोल उसे जज़्बातों में,

गिरा अना की दीवार रेल दिल की फिर पटरी पर आ गयी

कुछ है नहीं पर संग क्यों, ये सवाल जब कुछ ने पूछा था


हमे अब जो पता नहीं बस चूप्पी सी चेहरे पर आ गयी

लम्हे जो हम जी रहे, अफ़साने का आगाज़ अभी,

डर बस इतना कि बात गर कभी कही अंजाम पे आ गयी


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