बालपने में ज्ञान जो लहो
बालपने में ज्ञान जो लहो
बालक सोचे दुनिया मेरी,
मात-पिता में बसी है पूरी,
बड़ा जो होता थोड़ा भी तो,
बदल उसकी दुनिया जाती।
छोटे-छोटे तारे सारे,
स्वर्ग गए इंसान हैं प्यारे,
पता चला अंतरिक्ष ज्ञान का,
भूल गया संबंध पुराने।
लड़कपन सा बचपन सबका,
समझ थी छोटी सी नादान,
छल-कपट से दूर थी दुनिया,
फिर कैसे बदला गया इंसान।
बड़े हो गये बच्चे सारे,
शायद बच्चे ही अच्छे थे,
क्या करें इस विकास का,
पहले हम ज्यादा सच्चे थे।