बादल
बादल
इस दिसम्बर के महीने में चाँद की लुकाछुपी,
बादलों की रजाई में दुबका है सूरजतपी।
महकी-सी बगीया महकी-सी फुलवारियाँ,
ठिठुरन का मजा ले रही सारी पंखुड़ियाँ।
धूप को पिये सभी प्राणी खुराक समझकर,
अंजुमन में फैले हुये सभी झांकझुककर।
रग-रग में भरकर ये आजमाये सर्द हवाएँ,
वरदानी होती ये प्रकृति मर्ज भाग जाये।
उड़कर के परिंदे जी भरके नहाते जल में हैं,
टहनियों पर देखो मस्त नशेमन में झूलते हैं।
राजहंसों की जोड़ी लगे बड़ी ही खुशगँवार,
ठंडे जल में लहराकर बहते मचल-मचलकर।
अलाव की आग भी बुझी-बुझीसी रहती है,
सृष्टि भी सूरज को खोजने में लगी रहती है।