रंग
रंग
अब तो मैं भी हार गया हूँ
पुराने रंग को ताजा करते-करते
बहुत रफू है लिबास में उनको
नाकामी से ढका करते-करते।
कूंचियाँ लाख सतरँगी करे
कैनवास की रंगत
थक गया हूँ बेअदब अनछुपे
किरदारों से किनारा करते-करते।
है रिवायत कि मौत तक
निभाइये क्यूँकि ये रिश्ते हैं
बड़े बेशर्म हैं बेपर्दा हुए जाते हैं
जिंदगी का सफर करते-करते।
यह रंजिश बड़ी बेदर्द है
इतनी की उसे पता ही नहीं
मेरी आँखों मे अश्क उसके हैं
झर रहें हैं शिकवा-गिला करते-करते।
ख्वाब का क्या है कभी
बड़े हसीन से दिख जाते हैं
जिंदगी कट जाती है
रूह को जिस्म में घर करते-करते।