वीर सावरकर
वीर सावरकर
अंदमान में उम्रकैद की सजा भुगतके आया है,
भारतमाँ का सपूत है वो गान सभी ने गाया है।
कहते रत्नाकर से तुमने विरह दे दिया माता का,
शपथ है तुम्हे सरिता की, नाम अगस्ती भ्राता का।
चाफेकर बंधुओं ने मिलकर रँड को मारा गोली से,
मुजाहिर थे अंग्रेजों के कुछ उनकी भी टोली से।
फाँसी चढ़ गए लेकिन उनका व्यर्थ नहीं बलिदान,
ली प्रतिज्ञा सावरकर ने आरण्यक-पाठक हैं महान।
महाकवी थे लेखन उनका चिंतन प्रभावशाली,
कड़ी सज़ा में कविता करते कभी न रयतेला खाली।
बैरिस्टर था ठुकराई जिसने उपाधि नाम की,
"सर" क्या कहना वो नहीं है भारतमाँ के काम की।
सावरकर ने किया मुकम्मल आज़ादी की जंग को,
और फैलाया भारतभर में सशस्त्रता के रंग को।
नेताजी उनके थे हरदम कदम कदम पर साथ में,
प्राण लगाए दाँव पे देश छुड़ाना है हर हाल में।
किया था जिसने सर ऊँचा आंतरराष्ट्रीय सुझाव में,
फक्र है उसपे हाथ हैं जोडे शत्रू ने सुलझाव में।
देशवासियों का उन्होने किया संगठन बहुत बड़ा,
सेना का हर एक युवा है विरूद्ध अंग्रेजों के खड़ा।
भगूरपुत्र थे प्रस्थापित की समाज में थी समता,
विस्फोटक हैं भेजे देश में पड़ता पहरा कम था।
प्रणाम करता हूँ मैं शत शत सावरकर के चरणों को,
स्वतंत्रता का सूरज लाए पावन उन सब मरणों को।
जय हिंद!