नीर
नीर
यूँ ही नहीं बहते
नैनों से नीर
छलक जाते हैं
अपने तटबन्ध तोड़
भावों की अभिव्यक्ति है कभी
तो कभी बेवजह बह जाते हैं।
और मिलता है सुकून
कितना भी बहे
कभी खाली नहीं होते
समंदर सी आँखों के ये नीर।
सुख के कभी दुख के
खुद को खाली करते रहते हैं
पर रिक्तता नहीं
जाने क्यूँ बहते है नीर
समंदर सा खारापन लिए।
अंतर्मन को चुभ जाए कोई बात
तब भी बह जाते हैं
मोती सी चमक उठती है
आंखों में और बह जाती है
अपनी प्रवाह में।
ये नीर वजह से
अक्सर बेवजह।