देखते नहीं
देखते नहीं
देख के मुझे क्यूं तुम देखते नहीं
यारा ऐसी बेरुखी हां सही तो नहीं
रात दिन जिसे मांगा था दुआओं में
वो कॉलेज लाइफ एंजॉय किए की नहीं
मैं वो वक्त हूं जो ढल जाएगा
तुम्हें बीते कल की याद दिलाएगा
मोबाइल की दुनिया से निकलकर तो देखो
जरा मेरी कैंपस में आकर तो देखो
सपने सुहाने के दरवाजे पर आकर
कदम लड़खड़ाओगे,ये सही तो नहीं
दुख की घड़ी में फिर तुम हंसोगे
यारों संग मस्ती की कहानी बुनोगे
मानो या ना मानो ये मर्जी तुम्हारी
खुशनुमा पलों में इन्हें ही गिनोगे।