ज़ज्बात
ज़ज्बात
वो इस तरह सारे ज़ज्बात सम्हाले बैठे हैं
मानो अपने सर पे दस्तार सम्हाले बैठे हैं।
ये दरिया तो वो कब का पार कर चुके
और हम यहाँ मझधार सम्हाले बैठे हैं।
थोड़ी दुनिया तुम भी देख तो आओ जाना
हम बड़े शौक से घर बार सम्हाले बैठे हैं।
बेखौफ़ करो अठखेलियाँ तुम इस पानी से
हम नाव की यहाँ पतवार सम्हाले बैठे हैं।
मुहब्बत हो या जंग ,मेरे तरीके पुराने हैं
वही गुलाब ,वही तलवार सम्हाले बैठे हैं।
तुमने खूब अपनाया नये पहनावों को
हम तो वही कुर्ती सलवार सम्हाले बैठे हैं।
मेरे बटुए में तुम्हें महज़ तस्वीर दिखती है
हम इस बटुए में संसार सम्हाले बैठे हैं।
आ जाओ जाना,गज़ल मुकम्मल करनी है
न जाने कब से अशआर सम्हाले बैठे हैं।
मुद्दतों के बाद इक अच्छी ख़बर पढ़ी थी
हम आज भी वो अख़बार सम्हाले बैठे हैं।
ये किसकी शिकायत तुम किससे करते हो
यही मिल जुलकर सरकार सम्हाले बैठे हैं।
हर शक्ल पे वो लोग ही नक़ाब खोजते हैं
जो खुद कितने ही किरदार सम्हाले बैठे हैं।
इस कदर उम्मीद है उनकी हाँ होने की
अब तलक उनका इंकार सम्हाले बैठे हैं।
हैं जरूरतें, ख्वाहिशें तो गैरत, ज़मीर भी
न पूछो हम कैसे परिवार सम्हाले बैठे हैं