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गीत - गोरी का शृंगार

गीत - गोरी का शृंगार

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इंद्रधनुष-सम रंग से, छाई नई बहार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


लालायित करने लगी, मुझे अधर मुस्कान,

रंग लगा जो गाल पर, लगते चित्र समान,

हत्यारी बन हृदय का, करती है संहार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


गोरी का मुख देखकर, मन में उठे तरंग,

लाल-गुलाबी प्रीत के, चढ़े अनेको रंग,

बढ़ा रहे सौंदर्य को, हाय! अनूप अपार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


सरोबार हो रंग से, गोरी दिखे कमाल,

रंग बड़ा इतरा रहा, लग गोरी के गाल,

लगता जैसे कर रहा, गोरी से मनुहार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


चोली-साड़ी, तन-बदन,भीगे सारे अंग,

कारण जिसके दिख रहे, वस्त्र बदन के तंग,

इंद्रधनुष-सा रंग है , यौवन का विस्तार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


ललचाती बरबस मुझे, भीगी सारी देह,

इच्छा मेरी हो रही, आ जाओ तुम गेह,

बाहों में भरने तुम्हें, तरसे मन लाचार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


प्यार करूँगा मैं तुम्हें, कर मुझ पर विश्वास,

बना रहूँगा मैं सदा, प्रिये! तुम्हारा दास,

मिल जाओ मुझको प्रिये!, जीवन में इक बार।

जब से गोरी आ गई, कर सोलह शृंगार।।


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