स्कूल की नसीहत
स्कूल की नसीहत
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खुद की नज़रों में तो सच्चा था, सादा था,
और दुनिया हँसती रही सीधा था,आधा था।
कहने करने में ये कुछ तो फर्क करता,
कि ज़मीर पे अडिग वो जरूरत से ज्यादा था।
किताबों की बातें अच्छी तो थी बहुत मगर,
दुनिया वालों का कुछ और ही इरादा था।
"अमिताभ" ना होता जाहिलों में आज कि ,
स्कूल की नसीहतों का ज़ोर कुछ ज्यादा था।