कुछ लोग मेरी जमात का पता
कुछ लोग मेरी जमात का पता
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कुछ लोग मेरी ज़मात का पता पूछते हैं |
मै क्यों बैठा हूँ वर्षों से लापता पूछते हैं ||
निर्लज्ज महाभारत की इस ध्रुत क्रीड़ा में |
निसाह निर्बल झुलस रहा बिदुर पीड़ा मे ||
शकुनि से सब कपटी भीष्म द्रोण को घेरे |
द्रौपदी लुट रही लगे है दरवाज़े पर पहरे ||
अजी द्वापर की बात छोड़ो यह कलयुग है |
यहाँ कृष्ण भी तो बचाने की वजह पूछते हैं ||
कुछ लोग मेरी ज़मात का पता पूछते हैं |
दिल्ली के गलियारों मे औरत लज्जाहीन हुई |
धरती से अम्बर तक मानवता की तौहीन हुई ||
कुछ अप्सरायें भी अपनी सीमाऐं लाँघ रही हैं |
आधुनिकता मे र्निवस्त्र अधिकतर जाँघ रही हैं ||
अजी नहीं लिखी जाती दस्ताने हिन्द हमसे |
कुछ लोग तो समाज की ख़ता पूछते हैं ||
कुछ लोग मेरी ज़मात का पता पूछते हैं |