अपने अपने ख़ुदा
अपने अपने ख़ुदा
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न दूंगा मैं तुझे ख़ुदा अपना,
फिर हुआ मैं मुसलमां (?) क्यों कर?
और न तू बेच अपने प्रभु को मुझे,
इक सच्चा(?) हिन्दू हो कर.
जब क़यामत आयेगी तब देखेंगे,
जब नरक मिलेगा तब देखेंगे,
अभी तो बेचें सिर्फ अपनों के बीच,
अपने बनाने वाले को हम.
कि बाज़ार भी चालू रखना है,
इस दुनिया में रह कर.