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सावन के दूत

सावन के दूत

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सावन के दूत

वर्षा का स्वागत-- गीत

बरसो रे ---- बरसो रे ----- बरसो रे
तड़प रही धरती अब प्यासी ;
अँखियाँ भई उदासी ।
तेवर तेरे अब हमको भी ;
लगने लगे सियासी ।।
झलक दिखाकर -- गायब होना ;
इन्तेज़ार .............. करवाना ।
देर से आना ---- जल्दी जाना ;
आशायें ........... झुठलाना ।।
कब से तेरा हुआ चरित्र ये ?
सुन ले रे ; ....... ....अवधूत !
-------- ------ओ;सावन के दूत !

अब के बरस भी ना उठ

पायेगी बिटिया की डोली ।
कर्ज पाटने में गुजरेगी ;
ईद------दीवाली ------ होली ।।
ख़ुशियाँ कैसे लायें खरीदकर ;
कुम्हलाऐं चेहरों पर ।
भूख अगर पसरी हो घर में ;
कैसे मुस्कायेगा : घर ।।
बिलख रहे हैं : बीज ; धरा की 
कोख -------में -------भस्मीभूत 
------------- ओ ; सावन के दूत!

जलविहीन हैं नदियाँ सारी ;
धूल ----- फाँकते ------- खेत।
बंजर हुऐ पठार उड़ाते ;
आठों --- पहर की रेत ।।
वि : वस्त्र हुई अमराई मारे--
--हया के , कुछ ना बोले ।
सन्नाटा गूँजे ------ पनघट पर ;
चुहल : प्रेत ---- सी डोले ।।
चंद सयाने कहते ..... ये सब ;
कर्मों ----------की ------ करतूत !
------------ ओ ; सावन के दूत !

कहीं बाढ में बहे सभ्यता ;
कहीं ------- चटखती ----- धूप ।
कहीं खोजते नयन किनारे ;
कहीं सूख गऐ : कूप ।।
धरती : धधक रही चिता --सी ;
जंगल -------- हुऐ ------ कुरूप ।
नित नये -- नये अंधड दिखलायें
बे-- शर्मी -------- के ------- रुप ।।
रेशम की लालच में : जाले 
ढोता -------- है -------- शहतूत !
------------- ओ ; सावन के दूत !

धूल -- धूसरित मील के पत्थर ;
सड़कें --------- सूनी ----- सूनी ।
शिक्षा : ऐसी पसरी जैसे ;
पाँच हुए ---------- दो दुनी ।।
संसद का चेहरा पंचायत में ;
बे ------- नकाब हो जाता ।
अंन्धों की चक्की है : व्यवस्था ;
कुत्ता : ------- माल उडाता ।।
लोकतंत्र के सारे मसीहा ;
अब लगते हैं : यमदूत !
------------ ओ ; सावन के दूत !

पगडंडी : जो शहर को जाती ;
उस ------ पर भारी भीड़ ।
खेतों को बंजर कर डाला ;
छोड़ चले सब नीड ।।
आजादी का छाला देखो ;
फूटा सबके पाँव ----- का ।
बच्चों को भी रास न आया ;
मौसम अपने गाँव का ।।
"ग्राम्य-स्वराज्य "का "गाँधी-सपना" 
कभी होगा भी फलीभूत ?
------------- ओ; सावन के दूत !
बरसो रे ---- बरसो रे ---- बरसो रे 
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