"माँ ! कहाँ सोती है....."
"माँ ! कहाँ सोती है....."
"माँ ! कहाँ सोती है....."
मातृ--दिवस पर समर्पित एक भाव-प्रवण कविता , जो आपके अंतरमन को गहरे तक झझकोर देने का माद्दा रखती है
माँ ! कहाँ सोती है ?
सारी रात पलकों पे
सपने पिरोती है.....
माँ ! ......
आँचल में दूध और
आँखों में पानी लिए
सारा दिन अभावों में
उम्मीदें बोती है......
माँ ! ...........
अन्तस की आग सारी
उढेंल देती चूल्हे में
दामन का प्यार सारा
वार देती झूले में
सींचती लहू से ----
---बच्चों को फूल से
टूटे अरमान लिए
उम्र-भर रोती है.....
माँ !.........
प्यार और ममता की
देवी कही जाती है
भावना के ज्वार में
अतृप्त बही जाती है
बच्चों की जिद और
पति की थकान को
ओढ लेती चेहरे पर
बेबस मुस्कान को
उम्-भर पींठ पर
कडी धूप ढोती है....
माँ ! ........
ठण्डे पडे चूल्हे को
बार----बार जलाती है
आधा पेट खाकर रोज
आधा ही सो पाती है
जागती है "पौ -- फटे"
"दीपक ...... बुझाती है"
सारा दिन घर के लिए
तिनके जुटाती है
ज़ख्मों--भरे दिलों को "वो"
आंसूओं से धोती है.....
माँ ! .......
माँ ! कहां सोती है--------
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माँ ! तुझे प्रणाम.......