रात का मुसाफ़िर
रात का मुसाफ़िर
उम्मीद से बँधे समंदर है आँखों में,
जो बेवक्त बहते नहीं हैं।
यूं तो शिकायते बहुत है तुमसे,
मगर हम कहते नहीं हैं।
मुकम्मल कहे भी तो कैसे, जिंदगी वैसी है,
हम जैसी चाहते नहीं हैं।
उम्मीद से बँधे समंदर है आँखों में,
जो बेवक्त बहते नहीं हैं।
यूं तो शिकायते बहुत है तुमसे,
मगर हम कहते नहीं हैं।
मुकम्मल कहे भी तो कैसे, जिंदगी वैसी है,
हम जैसी चाहते नहीं हैं।