मेरा कमरा
मेरा कमरा
कुछ हल्के रंगों से रंगा है मेरा कमरा ,
चुप है मेरे जेहन के जैसे ,
हाँ , कुछ शोर है कमरे में ,
बिस्तर पर बिखरी पड़ी कुछ किताबें ,
आपस में गुफ्तगू करती हैं ,
कभी –कभी झगड़ने लगती हैं ,
कुछ कहानियां छिटककर बाहर गिर पड़ी हैं ,
मुझे मेरे नाना की कहानियों की याद दिलाती हैं ,
आजकल सब झूठ सा लगता है ,
बस इन कहानियों में सच्चाई नजर आती है ,
इनमें खोने से पहले ,
पास की खिड़की से ,
धुप की किरणें ,
मेरे ख्यालों को चुरा लेती हैं ,
जैसे ही मैं मुस्कराना चाहता हूँ ,
ये किरणें तीखापन बढ़ा देती हैं ,
कुछ बेतरतीब से कपड़े एक अलमारी को घेरे हैं ,
उसके ऊपर के खाने में कुछ बर्तन और कुछ सामान पड़ा है ,
पर मुझे मेरा कमरा खाली ज्यादा लगता है ,
मैं कुछ सोच ही रहा था ,
की कमरे में रक्खी किताबों ने फिर झगड़ना शुरू कर दिया ,
नाराज हैं मुझसे ,
लैपटॉप ने उनका वक्त चुरा लिया है ,
इस सब की आपाधापी में ,
कुछ अलग शोर सुनता हूँ ,
कमरा जो हल्के रंगों से रंगा है
पता नहीं क्या कहना चाहता है
हाँ , खाली कमरा शोर बहुत मचाता है!