चिट्ठियाँ
चिट्ठियाँ
मोहब्बत में जो लिखी हों किसी ने तो वो चिट्ठियाँ पढ़नी चाहिए,
उड़ कर आ जाये कहीं यादों की तो वो मिट्टियाँ मढ़नी चाहिए।
खेल-खेल में जो कभी शर्त में लगाई थीं चवन्नियाँ-अठन्नियाँ,
बचपन से बुढ़ापे तक के सफ़र में वो गिट्टियाँ बढ़नी चाहिए।
और कितना कब तक काम करना होगा कोई बतलाये हमको,
इतवार के संग में और दो- चार हों तो वो छुट्टियां पड़नी चाहिए।
हासिल क्या होगा आखिर महज़ चन्द रोटियाँ दिखाकर उनको,
जो भर दे पेट किसीका तो वो कढ़ाई में पिट्ठियां पड़नी चाहिए।
रंग इंद्र धनुष के आसमान पर अधिकार जमाये बैठे हैं कैसे,
गर समझ में आये उन रंगों की तो वो मुठ्ठियाँ भरनी चाहिए।