स्कूल बैग का भार
स्कूल बैग का भार
माँ! बस्ते के बोझ तले मेरा बचपन दब रहा है,
देखो ये कितना भारी है।
माँ! ये कितना बड़ा हो रहा है अन्याय,
मुझ बालक को दिला दे न्याय।
आगे बढ़ने की दौड़ में बस भागते चले जाते,
और हम फिर तनाव में आते।
हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं,
बस इस भीड़ की दौड़ में भागे जा रहे हैं।
क्या इस दौड़ का कोई अंत नहीं,
कहीं ये अंधकार अनन्त तो नहीं?