टूटना तो निश्चित है
टूटना तो निश्चित है
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नहीं जानती वह
कहाँ जाना है उसे
जल जाएगी पानी की बूँद की तरह
अंगारों पर गिरकर
या बन जाऐगी मोती
सीप की गोद में गिरकर
या बनेगी
जगमगाती लौ प्रचण्ड तेज़ की
या अमावस्या की भयानक
काली रात
या चढ़ेगी फूल बनकर
किसी देवता के चरणों में
अथवा रौंदी जाऐगी किन्हीं
बेदर्द पैरों के तले
या बनेगी रेत का घर
जो गिर जाऐ
शाम ठोकर में
बह जाऐ एक लहर में
या बनेगी नींव
एक सुदृढ़ भवन की
या दिखाऐगी दुनिया को
सच का आईना
पर आईना बनने के लिऐ
उसे ढूँढना होगा
यह तो निश्चित है।