प्रश्न चिन्ह ही पायेगा
प्रश्न चिन्ह ही पायेगा
ये दिन गुजर रहे हैं
बिन किताबों के
बिन उपन्यास, बिन कहानियों के
बस सुबह के सूरज
और रात की चांदनी से बात होती है।
इन दिनों में भूल गया हूं अपने देखे सपनों को
और ढूंढने लगा हूं, किसी और ही ख़ुशी को
रोज रात मुलाक़ात होती है।
अपने देखे सपने से
सपने में समय भी आ जाता है।
और कहता है तू क्यों भटक रहा है।
ये समय ना दोबारा आएगा
प्यार के हैं, ये दिन नहीं
तू क्यों नहीं समझ पाता है।
जो चाहता ही नहीं तुझको
जो समझ ही नहीं पाता तेरी
उसपे लिखी गई, हृदय कविता को
मैंने सोचा तू समझता होगा
हर इंसान की फितरत को
फिर भी धोखा खा रहा है।
प्रेम गीत तू गा रहा है।
कहां गए तेरे सपने
कहां गए तेरे अपने
क्या तू इतना अकेला है?
है अकेला तो, तो सुन शम्भू
जबतक ना समझे तुझको
तू अकेला रहना ही सीख ले
माना भीड़ बहुत है, इस दुनिया के मेले में
तू भी अकेला जीना सीख ले
प्यार नहीं यह, मुझे तो मिथ्या लगता है।
क्यों तसल्ली दे रहा है दिल को
वो हृदय अकेला ही, अच्छा लगता है।
वो समझ जाए तेरे शब्दों को
इसकी कल्पना ना कर तू…
माना बहुत कुछ मिल गया तुझे
उस छोटी-सी मुलाकात में
लेकिन दिल को मन से जोड़ ले
सच की चादर ओढ़ ले
नहीं तो,
एक दिन तू पछतायेगा
ये समय दोबारा तेरे सपनों
में सच बताने नहीं आयेगा।
अब तक ना बोला उसने कुछ
फिर भी उस मुस्कान में खोया है।
तू क्यों नहीं समझता है।
हर इंसान इस खेल में रोया है।
जब भी जवाब चाहा तूने
प्रश्न चिन्ह? ही मिला तुझे
फिर भी जवाब चाहता है।
खुद को क्यों आजमाता है।
अब भी तू कुछ चाहेगा
तो प्रश्न चिन्ह ही पायेगा...प्रश्न चिन्ह ही पायेगा।।