भ्रस्टाचार की वैतरणी
भ्रस्टाचार की वैतरणी
पेटु भरि न सही
थोड़ा तो खाओ
बहती गंगा मा
तुमहू हाथ ध्वाओ ।
जनक जी की भाँति
जो तुम बनिहौ बिदेह
कलजुग मा सुखिहैं हड्डी
झुराई तुम्हारि देह
नौकरी मा आयके तुम
बनिहौ जो धर्मात्मा
मरै के बादि कसम से
तड़पी तुम्हारि आत्मा
यहि से हम कहित है
धरम-करम का सीधा
धुरिया-धाम
मा मिलाओ
पेटु भरि न सही
थोड़ा तो खाओ।
इकीसवीं सदी मा जो
गाँधी जी लौटी आवैं
बिना लिहे-दिहे अबकी
याको सुविधा न पावैं
पद कै महत्ता पहिले
खूब समझो औ बूझो
कमीशन की खातिर
तुम भगीरथ सा जूझो
गिरगिट की तरह तुमहू
सब आपनी रंग बदलो
कचरा मा न सही तुम
झूरेन मा फिसलो
करो चमचागीरी खूब
दालि अपनिउ गलाओ
पेटु भरि न सही
थोड़ा तो खाओ....।
हमारि बात मनिहौ तो
तुम्हरिव भाग जगिहै
दुःख,दलिद्दुर तुम्हरी
ढेहरी से दूरी भगिहै
बाबूगीरी के रंग मा जो
तुम पूरा रंगि जइहौ
हरि हफ्ता फिरी तुम
होली दीवाली मनयिहौ
बड़े-बड़े अफ़्सर के तुम
रयिहौ आगे पीछे
बड़ी-बड़ी फाईलै तुम
करिहौ ऊपर नीचे
काबुली घोड़ा न सही
तुम टेटुवै दौड़ाओ
पेटु भरि न सही
थोड़ा तो खाओ..।
चंदुली खोपड़ी का न तुम
बार-बार न्वाचो
लरिका बच्चन के बिषय
मा कुछ आगे का स्वान्चो
रामराजि हुवै दियो
राम का मुबारक
सबसे पहिले साधो
तुम लाभ वाला स्वारथ
अकेले तुम कमयिहौ तो
सब घरु खाई
तुमका कऊन चिंता
बाढ़ दियो महँगाई
भ्रष्टचार की वैतरणी मा
"अमरेश" डूबो उतराओ
पेटु भरि न सही
थोड़ा तो खाओ..।