कोई मिट्टी बता रहा है कोई
कोई मिट्टी बता रहा है कोई
जो नज़र आ रहा है वो हाथों से सरकता जा रहा है,
वो कौन है जो ये सहसा भ्रम फैला रहा है,
जिस्म के आकार के इतने सन्दूक बना रहा है,
वो कौन शिल्पकार है जो ये साँचे बना रहा है,
कोई मिट्टी बता रहा है कोई मुक्ति बता रहा है,
वो कौन राहगीर है जो सही रास्ता बता रहा है॥