बुलबुले
बुलबुले
पानी के बुलबुले
बनते हैं फूलते हैं
और फूट जाते हैं !
हाथों में रह जाती है बस उनके अंदर की हवा
पर कहाँ? वो भी तो उड़ जाती है
खो जाती इन वादियों में !
बिलकुल वैसी ही होती हैं, हमारी इच्छाएं
जिनका कोई अंत नहीं …
बनती हैं फूलती हैं और टूट जाती है !
दिल में बच जाती है बस उनके टूटने की कसक
पर वो खोती नहीं , रह जाती है -
ज़ख़्म बनकर दिल की गहराइयों में !
और … जब कभी
बुलबुले के भीतर की खोई हुई हवा
सहलाती है उन जख्मों को ,
तो
रो पड़ता है मन सुखी पपड़ियों के दर्द से ,
और याद करता है उन बुलबुलों को जो फुट गए हैं...