वक़्त
वक़्त
वक़्त के पहिये,
रोके से नहीं रुकते,
घड़ी के काँटे,
बेरहमी से चलते|
काश थम जायें,
कुछ आज कुछ कल,
दोबारा छू जातें,
चाहत से भरे पल|
जीना था जीवन में,
कुछ ऐसे कुछ वैसे,
ना घमंडी वक्त रुका,
ना हम चलते गये वक़्त जैसे|
ना वक़्त का तकाजा हुआ,
ना दिन-रात का पता था,
बस भागते काँटों पे,
नाचना मैंने सीखा था|
अब जालिम-सा वक़्त,
हँसते रहता है मुझ पर,
आधी जिंदगी गँवा दी मैंने,
उसे पाने की कोशिश कर|
मैंने भी दिया जवाब,
तुम बस देखो हरक़त,
तेरे काँटों को दे टक्कर,
चुरा लूँगी चंद लम्हों की फुरसत|