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अफ़साना

अफ़साना

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अठखेलियाँ करती हुई तुम्हारी यादों की बारिश की कुछ बूँदें

सहसा टकरा गयी मेरे अंतरमन के किवाड़ों से

मैं एक पल पहले झूमती हुई-सी बिखर गयी अगले पल में

बुदबुदाते हुए होठों से फिर मैंने नाम लिया तुम्हारा,

और तुम्हारी तस्वीर को सीने से लगा बैठी...

अतीत की परछाइयों में कुछ ऐसी खोयी मैं

कि खुद की सुधबुध ही भूल बैठी

कि तुम्हारा मेरा हाथ पकड़ कर सड़कों में साथ चलना

अपनेपन का एहसास करा देता था

तुम्हारे साथ सदियों को चंद लम्हों में बिता लेना

एक अजब-सा जादू महसूस होता था तुम्हारी आवाज़ में

कुछ भी तो नहीं भूली हूँ मैं आज भी

वही तुम्हारी बेबाकी, मुझे मीठा सा छेड़ जाना

नज़रें बचा कर मुझे इत्मीनान से पहरों तक देखना

नहीं हो साथ फिर भी साथ होने का यकीन दिलाना

मुझे याद है तुम्हारा हर पल को हसीं बनाना

तुम्हारे चले जाने के बाद से

ये घर भी मकान हो गया है

कुछ भूले-भटके तुम्हारे लहज़े और सलीके

और कुछ तुम्हारे लौट आने की चरमरायी सी उम्मीदों की दीवारों पर

टिका हुआ है मेरे दिल का सुकून


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