हवा और धोखा
हवा और धोखा
हवा एक सुबह
कुछ यूं महसूस हुई।
मानो सारे अरमान को
पूरा करने आई।
हम भी चल पड़े
हवा के साथ साथ।
लग रहा था अब
कुछ नया एहसास।
कुछ और दिन यूं ही बीतते गए
हवाओं में खोए हम चलते गए।
हुआ कुछ यूं एक मुकाम आया
हवा के साथ साथ चलने का
अब अंजाम आया।
चले हम हवा के साथ
उस मुक़ाम पे जा पहुंचे
लगा जिंदगी की
हर खुशी पा चुके।
खोला जो पिटारा अरमानों का
मालूम पड़ा हवाओं ने
हमें तूफान को सौंपा है।
ख़ुशियों का नहीं ये
गम का झोंका है।
एक पल में सब
अरमान उड़ गए।
जिंदगी मुक्कमल रही
बेजान हम रहे।
धोखा हवाओं ने
कुछ यूं दिया।
बेजान दिल
जिंदगी जी रहा।
एक दिल जो अरमानों से
भरा हो उसके धोखे खाने के बाद
क्या हाल होता है ?
जनाब जवाब
हर शख्स के पास है।
बस जवाब ना दे पाने
का ही तो मलाल होता है।