ये इश्क़
ये इश्क़
लगाओ लाख ताले पर ये इश्क़ है साहेब
हवा की तरह रग-रग में समा जाता है
पता भी चलता नहीं आपको ये कब आया
और कब आपको दीवाना बना जाता है।
तन्हाइयों में सजने लगतीं हैं महफ़िल
महफिलों से अक्सर बेज़ार सा हो जाता है
अपने ही हाल पर आँखों में लिये खारापन
दीवाना दिल फिर बेवजह मुस्कुराता है।
जुबां पर डाल देता है ये लाज का पहरा
मगर आँखो को मुँहजोर बना जाता है
बिना बोले ही होने लगतीं हैं जी भर बातें
आँखों में दिल का अनुवाद समा जाता है।
एक उंगली की छुअन से बदन सिहर जाए
और बातों से बेखुदी सा नशा छाता है
किसी भी जांच में आता नहीं पकड़ में जो
जिस्म को ऐसा बड़ा रोग लगा जाता है।
उम्र और जात से इसका कोई ताल्लुक ही नहीं
जिसपे आना होता है बस आ ही जाता है
परिभ्रमण निगाहों का असर कर जाता है गहरा
और इसकी तपिश में दिल जले बिन रह न पाता है।।