पर्यावरण मेरा अस्तित्व
पर्यावरण मेरा अस्तित्व
पवन का शोर ,
घटाएँ घनघोर।
प्रकृति का विकराल रौब।
नदियों की अविरलता में रोक।
झरनों के कलरव पर लगी रोक।
झीलों,तालों पर बंद हुआ शोर।
दे रहा है त्राण मुसलसल,
अलामत मिली पुरजोर।
नींद से जागा नहीं ,
थामे है किसकी डोर।
है सैलाब पोशिदा अभी
दिखेंगे इस्तराब में जल्द ही सभी ।
मनोबल है कि डगमगाता नहीं,
चेतना है कि जागती नहीं।
सरकशी का है ये आलम
ठग रहें हैं खुद को ही।
वक्त ने दे दी दस्तक।
ये मंज़र संभालने की ,
भविष्य असुरिक्षत है ये जानने की ।
बन अर्षद सतरंगियों को यतरंगी बना लेने की
कोई मोज़दा हो ऐसी इफ़्तेदा कर लेने की ।