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और है...

और है...

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और है किस्सा मेरा सबकी कहानी और है।
और होगा झील का,दरिया का पानी और है।।

 

ये न समझो हो गया जो हो गया सो हो गया।
ज़िंदगी के बाद भी इक ज़िंदगानी और है।।

 

झील का ठहराव कितना ही लगे दिलकश तुम्हें।
यार दरिया की मगर सच-मुच रवानी और है।।

 

हर मकाम-ए-ज़ीस्त को मत एक सा समझा करो।
और है बचपन-बुढ़ापा,ये जवानी और है।।

 

दुश्मनों से भी अदब से पेश आने की ख़ुदा!।
एक बीमारी मुझे ये ख़ानदानी और है।।


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