खिलने दो मुझे
खिलने दो मुझे
पहचाना मुझे
मैं एक नन्हा पौधा हूँ।
मासूम शिशु की तरह
एक आस लिए उगा हूँ।
लेकर माँ वसुंधरा का आशीष
फिर भी हिय में है एक टीस।
आज तुम जो ढेरों
परेशानियों से घिरे हो
उसका मूल भी तुम ही हो।
मैं एक सुंदर सा बीज था जब
मेरे जन्मदाता को बड़ी निष्ठुरता
से तुमने काट दिया था तब।
जिसने की तुम्हारी सदा सहायता,
तुम बन बैठे उसके ही हंता।
बन पंछियों बसेरा, प्राण वायु दी हमेशा
इस्तेमाल किया तुमने उसका एक रेशा रेशा।
पर तुमने कभी न की उसकी रक्षा
जिसने दी तुम्हें छाँव और
मिटाई तुम्हारी भूभुक्षा।
प्राणदान के उपरांत भी वे फ़र्निचर
बन तुम्हारे घर की
शोभा बढ़ा रहे हैं।
नई पुरानी इमारतों को
सजा रहे हैं
ज्ञात है न तुम्हें कि
बिन हमारे तुम निष्प्राण हो जाओगे।
ढूंढने पर भी अपना निशान नहीं पाओगे।
अपनी अमूल्य श्वासों के लिए
अब खिलने दो मुझे।
अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए ही
बढ़ने दो मुझे।
अब बढ़ने दो मुझे.....।