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अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद

अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद

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इक हूक उठी है सीने में
दम बाजू का भी डोला है।
चीख उठी दीवारें भी
जब जय भारत की बोला है।

ले चला उठा वो बन्दूकें 
नयनो में उसके नीर भरा
हृदय में उसके ज्वाला थी
मजबूरी का आगार उठा

धरती माँ का बेटा वो
सारे बन्धन तोड़ चला
प्राणप्रिय मात-पिता भी वो
देशप्रेम में छोड चला।

चला आज़ाद आज़ादी का
सर पे सेहरा बांध के।
रोक सकी न सरकारें 
बढ़ा वो सीना तान के

सुखदेव, राजगुरू, भगत सिंह
बिस्मिल लहरी अशफाक अमर
साथी थे उसके ये दीवाने
और हाथों हाथों में हथियार मगर

हिला डाली ब्रिटेन की
सत्ता उसने इशारों से
घबराने लगे थे देखकर
आ गया सिंह बाजारों में।

घटना कैसे भूलूं मैं
याद वह जाती नहीं
मिट जाती है हस्ती जिन की
लौट कर वो आते नहीं।

आज़ाद न कोई घटना थी
न हस्ती जो विस्मृत हो
वो स्वयं में एक युद्ध थे
ज्यों महाभारत का संग्राम हो।

15 वर्ष का वयस्क था वो
ले रहा आन्दोलन में था भाग
देख विदेशी दूतों को
जुलूस पूरा गया था भाग।

निर्भीक बालक डटा रहा
जुल्मी के आगे खड़ा रहा
हो गया गिरफ्तार मगर
ज़िद पर अपनी अड़ा रहा ।

नाम आज़ाद न्यायधीश को
पहचान स्वतन्त्र बतलाया
भारत माँ का बेटा हूँ मैं
आजादी की खातिर आया


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