क्यूँ बेक़रार हो १९६५, १९७१ दोहराने को
क्यूँ बेक़रार हो १९६५, १९७१ दोहराने को
क्यूँ बेक़रार हो ,
इतिहास पुनः दोहरने को
कुछ सीखो १९६५ ,७१ से ,
जो फिर आए मुँहकी खाने को
वो बात अलग थी ,
जब तुमने सामने से वार किया
अब हद कर दी ,
जब तुमने गीदड़ जैसा प्रहार किया
किस बात की चुभन,
जो आ जाते उकसाने को
क्यूँ चुन लेते हो ग़लत मार्ग ,
अपनी बात बताने को
ये हमें पता है और तुम्हें भी पता है
"बल" "बुद्धि" और "संयम" में
हमसे जीत ना पाओगे ,
टकराओगे तो फिर मुँह की खाओगे
एक बार "शांति" पथ चुनकर तो देख
"अपनी" और "अपनो" की सुनकर तो देख
दीदार हो जाएँगे इसी जहाँ में उस परवरदिगार के
एक बार "ख़ुद" से "जिहाद" कर के तो देख