बेकार ही विवाद निकल आते हैं
बेकार ही विवाद निकल आते हैं
वीरान खंडहरों में दफन पिशाच निकल आते हैं
अपनों की आड़ में छुपे दुश्मन हज़ार निकल आते हैं
बस एक अफवाह भर थी कि पिता अब नही रहे
जायदाद के बंटवारे में कई हिस्सेदार निकल आते हैं
अमीरों की बस्ती में सारे ही कंगाल रहते हैं
ब्यौरे खोलों इनके तो ये भी कर्ज़दार निकल आते हैं
भीष्म किस भ्रम में थे कि अमरत्त्व प्राप्त हो गया
वक्त के साथ
वरदान में दबे अभिशाप निकल आते हैं
आज जो इतराते हैं आज़ादी पर अपनी
ज़रा इतिहास तो देखें !
कई पन्नो पर पुरखों के
घावों के निशान निकल आते हैं
बड़ा मुश्किल होता है
अपनी बात भी बेबाक़ी से कहना
हम कहते कुछ हैं
और बेकार ही विवाद निकल आते हैं...।