मुबारक दिन
मुबारक दिन
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मुबारक दिन
उस मुबारक दिन रमज़ान महीने की ईद थी,
जब ख़ुदा के दीदार के साथ उनकी हुई दीद थी।
उनके सजदों का सलीक़ा हमारे लिए तालीम था,
हम उनके बने मुरीद वो मौला की मुरीद थी।
हमारे जज़बातों की संजीदगी मत पूछिए तब,
इश्क़ की सूली पर सोच हो चुकी शहीद थी।
कैसे ज़िक्र करता उनसे अपने हाल-ए-दिल का,
मेरे ज़हन में आई हर तदबीर नाउम्मीद थी।
ये अधूरा अफ़साना मुझमें ही दफ़न हो गया,
वो हसीन शाम ही बस इसकी इक चश्मदीद थी।
क्या कशिश है क्या सबर है मेरे इश्क़ में अशीश,
हमें अगली ईद पर फिर उनके आने की उम्मीद थी।