यह कैसा कलयुग
यह कैसा कलयुग
कान्हा मोरे यह कैसा कलयुग है आ गया
जहा अपने ही अपनों पर इलज़ाम लगाये जा रहे।
न ही बेटा रहा माँ का न ही कोई भाई बहन का,
स्वार्थ के हो गए हैं रिश्ते, नहीं किसी को किसी की परवाह।
मतलब की हो गयी है दोस्ती भी किस पर करे कोई यकीन,
धोखा ही धोखा दिखाई दे रहा है और कुछ न नजर आये।
कैसे जीए कोई तेरे इस जहाँ में जहाँ प्यार बचा ही नहीं,
नफरत ही नफरत लिए लोग दिलो में घूम रहे।
स्वार्थ के हो गए हैम सब रिश्ते स्वार्थ के हो गए दोस्त यहाँ,
किस पर हम करे अब भरोशा यह तुम ही बतला दो।
ले लो फिर से जन्म एक बार तुम और प्यार का
सबक सब को सीखा दो,
शायद फिर से फिर लोग इज़्ज़त सब की करने लग जाए...।