मैंने ईश्वर को देखा प्रत्यक्ष
मैंने ईश्वर को देखा प्रत्यक्ष
मैंने ईश्वर को ढूँढ़ा
वनों में, बागों में,
कुँओं में, तड़ागों में,
पर्वतों में, घाटियों में,
पोखरों, नदियों, तालाबों और समन्दरों में
यहाँ तक कि
मन्दिरों, मस्जिदों,
गुरुद्वारों और चर्चों में भी
नहीं दिखी उसकी छाया भी
और मैं हुआ नास्तिक
जनता को और
सारे समाज को करने लगा जाग्रत
कि ऐ धर्म के ठेकेदारों!
नहीं है ईश्वर तुम्हारे तथाकथित धर्मों में
और धर्म तो अफीम है
जैसा कह गऐ थे बाबा मार्क्स
और यह तुम्हें कर रहा है बेहोश
आओ होश में और हो जाओ इससे मुक्त
समाज के ठेकेदारों ने
मेरी एक न सुनी और
फेंकने शुरू किऐ मुझ पर पत्थर
हुआ मैं लहूलुहान और मुझे खींचकर
डाल दिया गया समाज के बाहर स्थित
श्मसान की भूमि में छोड़ दिया गया
मरने के लिऐ भूख और प्यास के
एक-एक ग्रास और एक-एक बूँद
के लिए तड़पते तब तक-
-जब तक कि एक अबोध बालक ने
अपने नन्हेंं चुल्लू से पानी की बूँदें
मेरे मुख में न डाल दीं
जिनके पड़ते ही मुझमें
चेतना का हुआ संचार
और मैं उठ बैठा नये सिरे से
जीवन-संग्राम में उतरने को
और इस सत्य से
दुनियाँ को वाकिफ़ कराने
कि सचमुच मैं गलत था
क्योंकि ईश्वर को मैंने प्रत्यक्ष देखा
एक बूँद जल में तिरते
और वहाँ से निकल
इस विराट सत्ता में समाते!