द्वंद्व
द्वंद्व
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ना पूछो मैं क्या करता हूँ
क्या सुनता हूँ क्या कहता हूँ।
दुनिया को देखा जैसे,
चलते वैसे ही मैं चलता हूँ।
चुप रहने का ना कोई दावा,
और नहीं कुछ कह पाता हूँ।
अन्तर्मन को ज्ञात गलत पर,
प्रतिरोध ना कर पाता हूँ।
सच नहीं कहना मज़बूरी,
झूठ नहीं मैं सुन पाता हूँ।
बिना आग का जलता दीपक,
अंतर्द्वंद्व में मैं गलता हूँ।
सूरज का उगना है मुश्किल,
खुशफहमियों से सजता हूँ।
कभी तो होगी सुबह सुहानी,
शाम हूँ यारों मैं ढलता हूँ।