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हलफनामा

हलफनामा

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कल शाम को मेरे कदम उस राह पे चले

जहां जाने को सब मना करते थे

पता नहीं किस वजह से

लेकिन सब वहां से डरते थे।


अम्मी से पूछा तो बताया

वहां कुछ लड़कियां रहती है

जो पैसों के लिए

गलत - शलत काम करती है।


छोटा था मैं

तो इन बातों को ज़्यादा ध्यान नहीं दिया

बचपन के अल्हड़पन में

एक और समस्या नहीं लिया।


वक़्त गुज़रता रहा

ये मस्तिष्क ज़रा बढ़ गया

बचपन का गया साज़

अब हुआ जवानी का आगाज़।


अब वो राहें मुझसे छिपी नहीं

उन रास्तों पे भी चलने लगा

अब खेल के तरह नहीं

इंसान को इंसान की तरह समझने लगा।


इतना क्यों डरते हो इनसे

क्या इनमें दिल या प्यार नहीं है?

भगवान का ये संसार है

लेकिन इस समाज में उनका अधिकार नहीं है ?


वेश्या कहते हो ना इन्हे ?

लेकिन वेश्या कौन नहीं है ?

फर्क इतना है कि वो जिस्म बेचती है

और हम अपना ज़मीर।


क्या तुम अपना दिल नहीं बेचते हो

जब किसी को "लव यू" कहते हो ?

या बेचते नहीं हो अपनी इज़्ज़त

जब दोस्तो के सामने किसी की चुगली करते हो ?


कहो मुझे,

क्या तुम ज़ुबान नहीं बेचते हो

जब अपनी प्रियतम को

चांद - तारे दिलाने की बात करते हो ?

या बेचते नहीं हो अपना ईमान

जब अपने फायदे के लिए

दूसरे को ज़मीन पे गिराते हो ?


कभी पूछा है खुद से कि

क्या उनके सपने नहीं है

या कोई उनके अपने नहीं है ?

जिन्होंने खिलौने से खेलने की उम्र में

ज़िन्दगी से खेलना सिखा दिया।


क्या उसके अब्बू नहीं है

जो उसे "मेरी गुड़िया" कहके बुलाते होंगे

या उसकी अम्मी नहीं है

जो आज भी उसे ढूंढते - ढूंढते रोती होगी।


पता नहीं कहां से आयी है

बस घर उसका ये नगर बन गया है

शाम होते ही जहन्नुम बन जाना

इस राह का ये डगर बन गया है।


वो रही रुखसाना

बचपन में गाने का बहुत शौक था

अब गले से आवाज़ नहीं निकलती है

अब हर एक इंसान से खौफ था।


लक्ष्मी ? अपने मां - बाप की लाडली

पूरे मोहल्ले की जान थी

जिस दिन खेलके वापस नहीं आयी

वो २००८ की शाम थी।


अब बताओ, क्या ये उनकी गलती है

कि इस छोटी उम्र में दबोचा गया

उस फूल जैसे चेहरों पे

बिद्दती वाला खरोचा गया।


ठुकरा देते हो उन्हें

कहके की ये सब समाज में कलंक है

कहने को मेरे पास ज़्यादा कुछ तो नहीं

बस मेरे लफ्ज़ और ये कलम है।


ये नहीं कहता कि वो राह सही है

लेकिन उनमें रहने वाले हैवान नहीं है।

जानवरों को प्यार से पालते हो

तो क्या उनके लिए कुछ सम्मान नहीं है ?


कभी गुज़रो उन राहों से

तो हो सके तो उन्हें देखना और मुस्कुराना।

तुम कुछ भी हो, लेकिन इंसान हो

अपनी मुस्कान से हो सके तो ये बताना।


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