आये न ख़याल तुझको पाने का
आये न ख़याल तुझको पाने का
ख़ू-कर्दा हूँ यूँ मैं,
तेरे ज़ख्म खाने का,
जी में आये न,
ख़याल तुझको पाने का।
यूँ इश्क़ है हमें,
तमन्ना-ओ-इंतज़ार से,
आमद ही से इंतज़ार है,
तेरे जाने का।
इस क़दर आशुफ़्ता-हाल हूँ,
मैं इन दिनों,
बारहा आता है ख़याल,
तुझे भूल जाने का।
हम हैं तिश्ना-लैब,
और साक़ी सितमपरस्त,
ताक़ता हूँ मैं चेहरा,
इस खाली पैमाने का।
अपने हाथों से लौ,
दिखाते हैं क़फ़न को अपने,
देखना ये अंदाज़ मेरा,
अपनी लाश जलाने का।
तेरी गलियों में रवाँ थे,
दीदा-ए-हसरत लिए,
फिर यकलख़्त आया,
मुझे ख़याल ज़माने का।
ज़िन्दग़ी को कहाँ,
मैं पहचानता था हनोज़,
ज़िन्दगी नाम है तेरी,
आँखों में खो जाने का।