शहीद
शहीद
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जब हाथ अधबुने स्वेटर को
आगे बुनने को बढ़ायेगी
इक मां की सूनी गोद हुयी
ये कसक बहुत ही रूलायेगी!
जब मांग में भरने को सिंदूर
सुहागिन चुटकी बनायेगी
इक बीवी की सूनी कलाई से
क्या अब छनछन गुंज पायेगी?
जब ओढ़ दुशाला सर्दी में
ठिठुरता, हल वो चलायेगा
उस बूढ़े बाप की आंखों में
क्या नमी कभी कम हो पायेगी?
जब दौड़ के गिर जाने पर
घावों में मिट्टी भर जायेगी
उस बच्चे की आशाओं में
अब क्या रौशनी जगमगायेगी?
आओ बढ़कर हम करे नमन
उन मां के सच्चे सपूतों को
जिन की कुर्बानी अटल सत्य
जीवन को राह दिखलायेगी!